
क्या छोटे राज्यों में विकास छिपा है। अब महाराष्ट्र को दो राज्यों में बांटने की राजनीति हो रही है। क्या बिना बांटे विकास नहीं हो सकता। विदर्भ क्षेत्र के गांवों के किसान आज भी उपेक्षित हैं। विदर्भ क्षेत्र से मेरे मित्र अक्षय बुंद्रे से बातचीत के दौरान सामने आया कि विदर्भ में किसानों की हालत इतनी बद्तर होने लगी है कि लोग अपने पुरखों से चली आ रही किसानी को त्याग रहे हैं। किसान परिवार की अगली पीढ़ियां बड़े और चमकते शहरों की ओर अपनी रोजी-रोटी के लिए पलायन करने के लिए तैयार हैं और कितनों ने कर भी दिया है।
महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में 11 जिले आते
हैं। इनमें से नागपुर को ही सबसे ज्यादा विकसित जिला बताया जाता है। ऐसी खबरें हैं
कि अगर विदर्भ राज्य बनाने की राजनीति अपने मंसूबों में कामयाब हुई तो नागपुर को
विदर्भ की राजधानी बनाया जाएगा। विदर्भ के नाम पर राजनीति करने वाले धड़े मान रहे
हैं कि नागपुर राजधानी बनकर अपना पहले जैसा सम्मान पाएगा। दरअसल, नागपुर 1851 से
1861 तक नागपुर प्रांत और इसके बाद 1950 तक मध्य प्रांत और बरार संभाग यानी नागपुर
और अमरावति डिवीजन की राजधानी रहा है।
विदर्भ क्षेत्र में आने वाले ग्यारह जिलों के
ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले किसान औऱ गरीब परिवार दरिद्रता का जीवन जी रहे
हैं। वहां के रहने वाले बताते हैं कि नागपुर जिले को छोड़कर ज्यादातर वहां न बिजली
पहुंच पाती है और न ही अन्य सुविधाएं।
सुविधाओं से वंचित विदर्भ के परिवारों की
समस्या का अंदाजा इस बात लगाया जा सकता है कि महाराष्ट्र में विदर्भ क्षेत्र में
रहने वाले किसानों ने अपनी इसी माली हालत के चलते आत्महत्या की है। एक अनुमान के
मुताबिक पिछले एक दशक में महाराष्ट्र राज्य में करीब दो लाख किसानों ने आत्महत्या
की है जिसमें से 70 फीसदी आत्महत्या करने वाले किसान विदर्भ क्षेत्र में रहने वाले
थे।
बेमौसम बरसात और तापमान खराब होने वाली
फसल की लागत वसूलने लायक भी सरकार की ओर से सहायता नहीं मिल पाती।
महाराष्ट्र के गांव से बहुत दूर बेंगलुरू में
इंजीनियरिंग क्षेत्र में नौकरी करने आए अक्षय बुंद्रे विदर्भ के किसान परिवार से
हैं। बॉंद्रे के मुताबिक वह किसानी करना चाहते थे लेकिन क्षेत्र में असुविधाओं की
वजह से सभी लोग अपना मुख्य कार्य छोड़कर विकल्प तलाशने में जुट गए हैं। विदर्भ में
आने वाले शहरी क्षेत्र को छोड़कर गांवों में बिजली आपूर्ति की समस्या भी एक बड़ी
समस्या है।
जबकि पूरे राज्य में सप्लाई होने वाली कुल
बिजली का करीब 67 फीसदी हिस्सा
विदर्भ क्षेत्र से आता है।
विदर्भ में जो बिजली प्लांट हैं उससे विदर्भ के ही किसान परिवारों को बिजली नहीं मिल पाती। किसान की रात अंधेरे में तो दिन तपती धूप में अपनी फसल की सिंचाई करने में बीत जाता है। सिंचाई करने की आधुनिक मशीने भी अगर किसान खरीदे तो बिना बिजली वह असहाय ही महसूस करेगा। विदर्भ के हिस्से की सुविधा महाराष्ट्र शहरी क्षेत्रों तक सिमट कर रह जाती है। शायद यही वजह है कि विदर्भ के लोग अपने आपको उपेक्षित महसूस करने लगे हैं। इस तरह के भेदभाव का भाव असुविधाओं और सुविधाओं के बीच के लम्बे अंतराल के बाद ही उत्पन्न होता है।
विदर्भ में जो बिजली प्लांट हैं उससे विदर्भ के ही किसान परिवारों को बिजली नहीं मिल पाती। किसान की रात अंधेरे में तो दिन तपती धूप में अपनी फसल की सिंचाई करने में बीत जाता है। सिंचाई करने की आधुनिक मशीने भी अगर किसान खरीदे तो बिना बिजली वह असहाय ही महसूस करेगा। विदर्भ के हिस्से की सुविधा महाराष्ट्र शहरी क्षेत्रों तक सिमट कर रह जाती है। शायद यही वजह है कि विदर्भ के लोग अपने आपको उपेक्षित महसूस करने लगे हैं। इस तरह के भेदभाव का भाव असुविधाओं और सुविधाओं के बीच के लम्बे अंतराल के बाद ही उत्पन्न होता है।
अब सोचने की यह जरूरत है कि महाराष्ट्र के
लोगों को क्या चाहिए दो छोटे राज्य या सुविधाएं?
पंचायत संदेश- कॉलम कड़वी हकीकत में प्रकाशित लेख।
