ये क्यों बिकता है?
सेक्स बिकता है यह बात आज के दौर में कहने और सुन्ने को मिल जाती है. पर यह क्यों बिकता है? शायद इसका उत्तर खोजने की कोशिश कभी की गयी हो ऐसा कतई नही लगता. भारतीय फ़िल्म जगत में इंटरटेनमेंट का मतलब सिर्फ़ सेक्स क्यों बनता रहा है यह कहने और सुन्ने को भी हर गली-कूचे और सडक या चाय की दुकान पर हो रही ही चर्चा में मिल जाता है. लेकिन इंटरटेनमेंट का मतलब अब भारतीय फ़िल्म जगत में सेक्स की ही झलकीयां क्यों रह गया है यह शायद ही कभी चर्चा का विषय रहा हो. एकता कपूर और शोभा कपूर के प्रोडक्शन में और मिलन लुथरिया के निर्देशन में बनी फ़िल्म "दा डर्टी पिक्चर" के बहुत चर्चें हैं. खासकर इंटरटेनमेंट वाला डाईलोग (फ़िल्मे सिर्फ़ तीन चीजो की वजह से चलती हैं इंटरटेनमेंट-३) नौजवानो की ज़बान पर सबसे ज्यादा रटा हुआ है.
फ़िल्म में एक डाईलोग है जो फ़िल्म की बहतरीन अदाकारा विधा बालन ने आखिर में बोला- "हर किसी ने कमर में हाथ डालना चाहा, किसी ने सर पर हाथ नही रखा". सही माईनो में अगर देखा जाये तो ये डाईलोग बहुत कुछ बयान करता है. नारी को समाज ने जिस नजर से देखा उसकी छवी वैसी ही उभर कर लोगो की आखों में उतर आई. बेबाक तरिके से अगर बात कही जाये तो समाज यह मानने से अकसर इनकार करता रहा है कि वो ही चाहता है इसलिय इंटरटेनमें का मतलब फ़िल्म में सेक्सी दिखना या सेक्स को झलकाना हो गया है. फ़िल्मों का दौर बहुत तेजी से बदला है.. दरअसल फ़िल्मों में नारी को सिर्फ़ इंटरटेनेमेंट का चोला पहना कर "इंटरटेनमें-सेक्स" के रूप में जब से परोसना शुरू हुआ उस समय से लेकर आज कुछ ऐसे दौर का निर्माण हुआ कि लोगो को इसकी आदत बनती चली गयी. जिससे लोगो को फ़िल्में मसालेदार पसंद आने लगी. यह फ़िल्म आज के पुरूष समाज की एक तस्वीर भी पेश कर गयी कि आज भी नारी का महत्व वो ही है जो पहले था पर आज बस जो आजादी दिखाई देती है वो सिर्फ़ बगावत है या यह कहना ठीक होगा कि नारी को अपने अधिकारों की स्वतंत्रता तो मिली है पर इतनी नही कि वह समाज में अपने को पूरी तरहं महफ़ूज महसूस कर सके या फ़िर यही कहना ठीक होगा कि जिन नारीयों को अपने अधिकारो की पूरी स्वतंत्रता मिली है उनकी संख्या बहुत कम है.
"दा डर्टी पिक्चर" को अगर समझने की कोशिश की जाय तो फ़िल्म में बार-बार कहीं न कहीं यह समझाने की भी कोशिश की गयी है कि यह फ़िल्म या ऐसी फ़िल्म इसलिय बनाई गई है क्योंकि ऐसा समाज देखना चाहता है फ़िर चाहे वो छुप-छुपा के हो या जैसे भी.
फ़िल्म में विशेष कलाकार हैं नशिरूद्दीन शाह, इमरान हाशमी, विधा बालन और तुशार कपूर. जिन्होने बहतरीन अभिनय किया. फ़िल्म में सभी ने अच्छी एक्टिंग की है लेकिन खासकर अगर बात की जाय तो विधा बालन और नशिरूद्दीन शाह ने जो अभिनय किया वाकई तारीफ़े काबिल है. फिल्म में दो गाने हैं जो फिल्म को ज़्यादा देखने लायक बनाते हैं. आखिरी शब्दो में कहा जाये तो बस यही कहा जायेगा कि यूवाओं के दिलों को छू कर "डर्टी पिक्चर" अपनी खूबसूरती का खूब रंग बिखेर रही है.



