विचार वर्सस नोलेज--एक बड़ी बहस


विचार वर्सस नोलेज

यहां विचार और ज्ञान में आपस में कोई युद्ध नही होने वाला बल्की ये देखने की एक कोशिश भर की जाएगी कि विचार पहले आया या नोलेज यानी ज्ञान पहले आया?
यहा पहले थोट (विचार) और प्रोसेस (प्रक्रिया) को थोड़ा अलग करके देखना होगा. क्योंकी प्रोसेस या हिंदी में कहें तो प्रक्रिया निरंतरता को झलकाती है. ये एक एसा तंत्र है जो चलता रहता है. पर यहा ये साफ कर देना बहतर होगा कि थोट या विचार नोलेज या ज्ञान से बिलकुल अलग होता है. हालाकि बहुत से विद्वानो, बुद्धीजीवी और मेरे साथीयों का मानना रहा है कि नोलेज विचार से पहले आई है. इस निराधार तर्क पर सवाल उठने लाजमी होगें. जब प्रेस नही थी या कोई संचार सुविधा नही थी तो तब लोग अपने आप ही मिथ्या गढते थे और विचार के रूप में आपस में संचार किया करते थे. तो उनके पास कहां से नोलेज (ज्ञान) आई थी?...क्या आप उन मिथ्या-भ्रमो को ज्ञान मानते हैं? अगर मानते हैं तो क्यो मानते हैं? अगर क्नोलिज पहले आई, तो उस समय लोग भ्रम में क्यों पड़े हुए थे?
और प्रोसेस उस स्थिति को कहते है या कहिए कि प्रोसेस चलना तब आरंभ हुआ था जब मानव ने ओबजर्व यानी अवलोकन किया या करते हैं.
अगर विचार नोलेज से बाद में आया तो नोलेज देने के लिए प्रकाशित,प्रसारित, प्रचारित और संचार करने के लिए विचार कहां से आए? यहां ये भी बात साफ कर देना बेहतर होगा कि ऐसा है तो नोलेज एकत्र करने के लिए वो विचार कहां से आया?. दूसरा ये कि अगर नोलेज पहले आई तो उस नोलेज को प्राप्त करने का विचार कहां से आया?
अमेरिका के प्रींसटन विश्वविधालय के मनोविज्ञान के प्रोफेसर गिलबर्ट हरमन ने एक विशेष विषय पर शोध किया और वो विषय है –विचार क्या है  जिसमें यह साफ कहा गया है कि नए विचारों को समझने के लिए जो पहले की धारणा होती है, वो विचार है.  
यहां ये बात भी गौर करने वाली है कि यहां विचारों की बात नही हो रही है बल्कि विचार की बात हो रही है. क्योकी मानव के पास विचार था इसलिए उनसे विचार बने यानी बहुत से विचार बने. मतलब साफ ये है कि अगर हम 4000-5000 ईशा पूर्व के इतिहास पर नजर डाले तो पता चलता है कि कोई ऐसे सूचना नही थी. जिसे नोलेज कहा जा सके. लेकिन उस समय विचार जरूर था, मानव यानी आदी मानव के मस्तिष्क में या कहिए कि एक धारणा जरूर थी. जिसके बल पर उस समय का मानव चीजो को सझता था या कहिए कि चीजो को अपने पहले से मोजूद विचार के द्वारा उस चीज को संज्ञा देता था.
उस समय मानव ने एक विचार बना लिया था..कि उस वस्तू में क्या है, यह एक वस्तू है, या कुछ और, या कुछ भी कहें. और ये विचार बनेने की शक्ती कहां से आई थी?..तो  इसका साफ उत्तर यही होगा कि इसके लिए मस्तिष्क में पहले से कोई एक धारणा तो जरूर होगी.
पहिंए और आग का अविष्कारों को एक बहुत ही सटीक उदापरण की तरह लिया जा सकता है. आग का जब अविष्कार के समय जब मानव ने दो पत्थरों को उठा कर आपस में रगड़ा..तब ये अविष्कार संभव हो पाया. उस मानव ने उन दोनो पत्थरो को क्यों उठाया?.. तो सीधा सा उत्तर है कि उस मानव ने उन पत्थरों को, तभी उठाया तो जब उसके मस्तिष्क में मोजूद कोई ना कोई विचार जरूर होगा या आया होगा.
जब धीरे-धीरे विकास का चरणं आगे बढा तो या ये कहिए कि जब मानव को अपनी जरूरतो का एहसास हुआ तो उसी विचार से बहुत से विचार बनने आरंभ हुए और मानव ने एक दूसरे से संचार करना शुरू किया. यहीं प्रक्रिया संचार थोट प्रोसेस या कहिए कि विचार प्रक्रिया हो गई.   
 इसी प्रक्रिया के दोरान जिन भी जानकारियों को विचारो के रूप में उस समय का मानव, अपने मस्तिष्क में ढाल पाया. और वही विचार जब आने वाली पीढीयों के लिए अविष्कारो, तत्वों, और बहुत से संकेतो के माध्यम से उपलब्ध हुए. जिनको उनके बाद वाली पीढीयों ने समझा, जाना, पाया..और उनका विकास किया ....वो सब जानकारियों के रूप में के देखा गया और आगे विकास प्रक्रिया के माध्यम से आगे के लिए भी उपलब्ध हो पाया. जिसको जानकारियों या कहिए ज्ञान की संज्ञा दी जाने लगी.    
 अगर कुछ महान लोग इन बातों को नही मानते हैं तो यहां पर बिना लाग लपेट कर..ये कह देना सही होगा कि वो ज्ञान और विज्ञान में अंतर नही कर पाएं या ये भी कह सकते है कि वे विचारो से न्याय नही कर पाए.
और जो छात्र या मेरे साथी नोलेज या ज्ञान, विचार से पहले आई...इस बात की रट लागाए है तो उन्हे मेरी विनर्म और दिल से सलाह होगी कि इतिहास छानने प्रयास जरूर करें उत्तर खुदमाखुद मिल जाएगा. यह मेरा विश्वास है. 

और इसके साथ-साथ अपने इस विचार पर गहराई से सोचने का एक अच्छा प्रयास जरूर करें,क्योंकी एक प्रसिद्ध मनोविज्ञानिक ने भी कहा है कि "सोचना किसी समस्या पर विजय प्राप्त करने की प्रक्रिया है".   








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