जमाना बदला, मिज़ाज में परिवर्तन आया। साहित्य का क्षेत्र भी इस बदलाव के दौर से अछूता नहीं रहा। पहले कविता समझने के लिए अपने आपको ढाला जाता था तो अब कविताएं लोगों को आसानी से समझाने के रची जाने लगी हैं। मंचीय कवि कविताओं में सरल, रोचक और समझने लायक ही शब्दों का प्रयोग कर रहे हैं। ऐसा ज्यादातर मंचीय कवियों की कविताओं में देखने को मिलता है। वर्तमान में आयोजित किए जा रहे मंचीय कविता पाठ के विषय के इर्द-गिर्द घूमते सवालों का जवाब दे रही हैं मशहूर कवयित्री डॉ. सरिता शर्मा। प्रस्तुत हैं डॉ. सरिता शर्मा से अनिल कुमार की खास बातचीत के अंशः
कवि सम्मेलनों में क्या बदलाव आया है?
-बदलाव आया है। मंचीय कविता पाठ ज्याद पॉपुलर हुए हैं। यहां गुनगुनाना पढ़ता है। मंच की कविता और अन्य कविता में यही अंतर है कि मंच पर कही जाने वाली ग़ज़लें और कविताओं की शब्दावली बहुत सरल और आसान होती है। यह खासकर श्रोतोओं को ध्यान में रखकर ही कही जाती हैं। मैंने कहीं तरन्नुम नहीं सीखा लेकिन गुनगुनाना जैसे मानों समय की मांग थी। मंच पर जाती गई और गुनगुनाने लगी।
क्या कवि सम्मेलनों का व्यवसायीकरण हो गया है?
-हां हुआ है काफी हद तक। मंचीय कविता पाठ का व्यवसायिकरण हो जाने का उदाहरण है कि मंच पर कविता पाठ के लिए नए कवियों की जमात सी खड़ी हो गई है। कविता के साथ रात काली कोई नहीं करना चाहता लेकिन रातों-रात मशहूर होने के लिए मंच पर जल्द से जल्द आना चाहते हैं। मेरे पास कई ऐसे कवि बनने की चाह लेकर आते हैं जो एक दिन कविता लिखने की कला सीखते हैं, दूसरे दिन सीखते हैं और तीसरे दिन मंच पर चढ़ना चाहते हैं।
ऐसे में, क्या कविताओं में भाषा का स्तर गिरा है?
-हां बिलकुल। वो..कहते हैं ना... कि खोटे सिक्के जब बाजार में चलने लग जाएं तो खरे सिक्कों का महत्व अपने आप ही घट जाता है। तात्पर्य यह है कि मंच पर पढ़ी जाने वाली कविताओं में फूहड़पन ज्यादा आ गया है। हास्य कविताओं में फूहड़ता ही नजर आती है। यह सिलसिला यूं हीं शुरू नहीं हुआ। क्योंकि अगर इस विशेष व्यंजन का स्वाद भी श्रोताओं को चखाने वालों ने चखाया है। अब तो हालत यह है कि कई श्रोताओं को फूहड़ता में ही आनंद आने लगा है।
अच्छे कवि अपने आपको कैसे बनाए रख रहे हैं?
-मैं, अपनी बात करूं तो मैं इस दौर में इस फूहड़ता से अपने आपको दूर रखकर एक मंचीय कवयित्री के रूप में अपने आपको स्थापित कर पाई हूं। उसकी वजह मेरे आदर्श, सच्चाई और ईमानदारी है।
एक अच्छा कवि होने के लिए कुछ विशेष क्षमताओं का होना जरूरी है?
अगर आप अपने लिखे की आलोचना करना जानते हैं और आलोचना करने के बाद उसे खारिज करने की क्षमता रखते हैं तो आप एक अच्छी कविता रचने में कामयाब हो सकते हैं।
क्या कवि खुद अन्य कवि की कविताएं भी पढ़ते हैं?
कवि पर निर्भर करता है। वो क्या पढ़ना चाहता है। मैने ऐसे लोग भी देखे हैं जो कवि अन्य कवि की कविताएं नहीं पढ़ते। लेकिन जहां तक मैं अपनी बात करूं त मैं अकसर मेरे पसंदीदा चयनित कवियों की कविताएं पढ़ा करती हूं।
आपकी लिखी हुई किन पंक्तियों ने आपको सबसे ज्यादा हैं?
-मेरी कुछ पंक्तियां हैं जो मुझे प्रभावित करती हैं। यह पंक्तियां कुछ हैः
“मुझसे मिलकर कोई मेरी बेखुदी से डर गया
वो अंधेरे में जिया था रोशनी से डर गया
उसके ज़हनों-दिल पे काबिज थी हवस की आंधियां
पास आया तो मेरी पाक़ीज़गी से डर गया”
अन्य कवि या कवयित्री की किन पंक्तियों ने आपको प्रेरित किया?
मुझे महादेवी वर्मा की कविताओं ने बहुत प्रभावित किया है। उनकी कुछ पंक्तियां अकसर गुनगुनाया करती हूं।
‘मैं नीर भरी दुख की बदली
परिचय इतना इतिहास यही
उमड़ी कल थी मिट आज चली……
इन पंक्तियों की शुरूआत कुछ ऐसे होती है..
“मैं नीर भरी दु:ख की बदली!
स्पंदन में चिर निस्पंद बसा,
क्रन्दन में आहत विश्व हंसा,
नयनों में दीपक से जलते,
पलकों में निर्झरिणी मचली!”
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“अगर आप अपने लिखे की आलोचना करना जानते हैं
और आलोचना करने के बाद
उसे खारिज करने की क्षमता रखते हैं
तो आप एक अच्छी कविता रचने में कामयाब हो सकते हैं”
- डॉ. सरिता शर्मा
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परिचय
शिक्षाः स्नातकोत्तर (हिंदी साहित्य), पीएचडी
प्रकाशित कृतियाः ‘हो गई गूंगी व्यथाएं’ (अनुगीत संग्रह), ‘पीर के सातों समंदर’ (गीत संग्रह), ‘नदी गुनगुनाती रही’ (गीत संग्रह), ‘तेरी मीरा जरूर हो जाऊं’ (मुक्तक-छंद संग्रह), ‘गीत नन्हे मुन्नों के’ (बाल गीत संग्रह), ‘चांद, मोहब्बत और मैं’ (ग़ज़ल संग्रह), ‘चांद सोता रहा’ (ऑडियो एलबम)
काव्य यात्राएः गणतंत्र दिवस के अवसर पर लालकिले पर आयोजित होने वाले प्रतिष्ठित राष्ट्रीय कवि सम्मेलन में 11 बार सहभागिता सहित देश-विदेश में अनवरत काव्य यात्राएं। सम्मान एवं उपलब्धियां: ‘ब्रज कोकिला’ उपाधि- मथुरा, ‘महादेवी वर्मा पुरस्कार’ महादेवी वर्मा न्यास- फर्रुखाबाद; ‘छत्तीसगढ़ निधि’ उपाधि- भिलाई नगर, छत्तीसगढ़; ‘सुमन’ सम्मान- उन्नाव; ‘नर्मदा’ सम्मान- खरगौन मध्य प्रदेश।

