ग्लोबलाइजेशन के दौर
में भारतीय समाज कितना बदल गया है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वह खुद
की भाषा पर तवज्जों देना ही भूलता जा रहा है। कुछ अंग्रेजी तो कुछ सोशल मीडिया और
तेजी से बदल रही रूचियों के कारण हिंदी साहित्य एक पिछड़ रहे दलित की तरह है। हिंदी के पिछड़ेपन, साहित्य के घटते महत्व तथा बोलने-लिखने की आजादी को लेकर लेखक व वरिष्ठ पत्रकार शरद दत्त से संक्षिप्त बातचीतः
साहित्य से युवा,
क्यों दूर हो रहा है, इसकी क्या वजह हैं?
युवा, हिंदी और
अंग्रेजी दोनों साहित्य से दूर हो रहा है। लेकिन इस कशमकश में हिंदी साहित्य
ज्यादा ही कुछ पिछड़ रहा है। इसकी वजह दो हो सकती हैं एक तो हम साहित्य की किताबों
के लिए अच्छी कीमत का निर्धारण नहीं कर पा रहे हैं। आप ही बताइए अगर अच्छा साहित्य
बाजार में ऊंचे दामों पर बिकेगा तो युवा कैसे उसे खरीदेगा।
इसकी दूसरी यह भी
वजह है कि अब पब्लिक लाइब्रेरियों के प्रचार-प्रसार और उनसे युवाओं को जोड़ने के
अभियानों में कमी आई है। पहले पब्लिक लाइब्रेरियां पढ़ने वालों की संख्या से भरीं
रहती थीं लेकिन आज पब्लिक लाइब्रेरियों में सन्नाटा पसरा रहता है। पिछले 20 साल
में की तुलना में वर्तमान में हिंदी साहित्य की दुर्गती ज्यादा दुर्गति हुई है।
साहित्य में हिंदी
भाषा कहां तक पिछड़ गई है?
इसका सटीक अंदाजा
लगाना तो मुश्किल है लेकिन कहा जा सकता है कि साहित्य के महत्व घटने के साथ ही
हिंदी भाषा का भी महत्व घटा है। एक ओर जहां हिंदी साहित्य के लगातार पिछड़ने में
अंग्रेजी को अत्याधिक महत्व दिया जाना जिम्मेदार है तो दूसरी ओर क्षेत्रीय भाषाओं
का महत्व धीरे-धीरे बढ़ता हुआ देखने को मिल रहा है। कन्नड़, तमिल, मराठी सहित कई
क्षेत्रीय भाषाओं में लेखक सक्रिय हुए हैं। क्षेत्रीय भाषाओं के साहित्य में लोग
अब रुचि दिखाने लगे हैं। पिछले कुछ सालों में इसमें ज्यादा नहीं लेकिन साहित्य में
क्षेत्रीय भाषाओं का महत्व बढ़ा है।
हिंदी साहित्य का
महत्व क्यों घट रहा है?
एक ओर अंग्रेजी के
प्रभाव से तो दूसरी ओर अनभिज्ञता से। देश की नई पीढ़ी को नहीं पता कि हिंदी
साहित्य में कितना बड़ा ज्ञान भंडार छिपा है। इसमें सरकार भी कहीं न कहीं
जिम्मेदार हैं। दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी को ही ले लीजिए। दिल्ली पब्लिक
साइब्रेरियों में इतना पुराना साहित्य भरा है लेकिन अभी तक दिल्ली में रहने वाले
युवा ही इसे नहीं जान पाए और न ही सरकार
ने ही इसे प्रचारित करने की जहमत उठाई।
सोशल मीडिया साहित्य
जगत पर क्या प्रभाव डाल रहा है?
देखिए यह कहने में
कोई गुरेज नहीं है कि सोशल मीडिया ने हर व्यक्ति को अपने अनुभव को व्यक्त करने का
प्लेटफॉर्म दिया है। इससे कुंठाएं कम हुई हैं। जहां तक साहित्य पर पड़ते इसके
प्रभाव की बात है तो कहा जा सकता है कि सोशल मीडिया एक बदलती दुनिया उदाहरण है,
लोगों की रुचि बदल रही है पहले लोग अपने अनुभव किताबों में ही लिख पाते थे लेकिन
अब सोशल मीडिया पर भी लिख रहे हैं।
सोशल मीडिया पर
लिखने वालों पर हमले हुए, कार्रवाई हुईं, इसको कैसे देखते हैं?
निंदनीय है ऐसे हमले
और कार्रवाई। सोशल मीडिया पर लिखने वालों की भावनाओं का सम्मान होना चाहिए। इस पर
हो रहीं आलोचनाओं को सकारात्मक लेना चाहिए। सुधार की गुंजाइश हो तो करना चाहिए।
वैसे लिखने की आजादी के नाम पर किसी के खिलाफ अभद्र भाषा का इस्तेमाल नहीं है।
वर्तमान किस तरह के
साहित्य की मांग कर रहा है?
लोगों की रुचियां
लगातार बदली हैं। कभी भी कोई व्यक्ति एक चीज को पसंद नहीं करता। उसकी रुचि में
परिवर्तन आना स्वभाविक है। आज लोग वही पढ़ना चाह रहे हैं जिसमें उनकी रुचि है या
जो वह पसंद करते हैं। उन्हें इससे कोई मतलब नहीं कि कौन सा साहित्य क्लालिटी वाला
हो सकता है और कौन सा नहीं।


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