राष्ट्र-मण्डल खेलो के कुछ ही दिन बचे है दिल्लि की दूर्दशा इस कदर खराब है कि ये सोचना भी अब अजीब सा लगता है कि राष्ट्र-मण्डल खेल अब हो भी पाएंगे……।
यहां तो ऐसा लगता हे दिल्लि की मुख्य मन्त्रि श्री मति.. शीला दिक्षित जी कि बात को कोई भी अधिकारी गम्भीर रूप से नहि…ले रहे है…अखिर शीला जी भी कहा तक चिल्लायेन्गी उन्कि कोइ सुन्ने को तैयार हि नही है…..
क्योन्कि सभी अधिकरी लोग नकारा हो गये है..ऐसा लग रहा हे… कि यहा बात कुछ ओर है और वो बात ये है कि जितना भी फ़ण्ड या पैसा राष्ट्र-मण्डल खेलो कि तैयारियों के लिये आया था उसमे से छोटे दर्जे के अधिकारीयो से लेकर बडे दर्जे के अधिकारीयो तक सभी ने अपने- अपने “बैन्क बैल्लेन्स” बनाने मे कोई कसर नही छोडी। जिसका जहा हाथ लगा वहि हाथ मार लिया..शीला जी ने तो सोचा होगा कि सब काम के लिये कितने समर्पित है। पर उन्हे ये नहि मालूम था कि ये समर्पण काम के प्रति नहि बल्कि मोटी-मोटी भारी भरकम राष्ट्र-मण्डल खेलो के लिये आयी रकम के प्रति था… इससे इन अधिकारीयो को कोइ मतलब नहि था कि ये रकम कैसे-कैसे करके जैसे-तैसे कभी गैस कि किमतो को उपर-निचे करके या कभी ट्रान्स्पोट के किराये को उपर करके तो कभी कच्चे तेल कि किमतो मे बढहोतरी करके…या विदेशी बैन्को से करोडो कि भारी भरकम रकम उधार ले के…. राष्ट्र-मण्डल खेलो के लिये हमारी सरकार ने रकम जुटाई थी…
और जब राष्ट्र-मण्डल खेलो के दिन ज्यादा हि करीब आ गये तो इन हमारे खर्चीले अधिकरीयो कि नीन्द खुली कि अब जल्दि- जल्दि राष्ट्र-मण्डल खेलो कि तैयारी खतम करलो पर अफ़सोस उन्हे नही हमे है… अब हमारे देश कि नाक कटने का हमे डर जो लगा हुआ है… क्योन्कि जब तक हमारे अधिकारी लोगो कि नीन्द खुलती तब तक इन्होने कुछ पैसा अपना “बैन्क बैल्लेन्स” बनाने के चक्कर मे विदेशी बैन्को जमा कर दिया होगा तो कुछ मोज- मस्ति, पार्टीयो या शादियो मे जा जाकर अपनी शानोशोकत दिखाने मे खर्च दिया..
अब बचे- कुचे पैसो से कोइ तेयारी सही रूप से हो पाती है क्या….? नही क्योन्कि जिन ठेकेदारो को दिल्लि कि मरम्म्त करने का जिम्मा उठाना पड़ा उनके दिल से पुछो कि उनको एक छोटे-छोटे से टेन्डर लेने के लिये पता नहि कहा- कहा किस- किस अधिकरी को कितनी-कितनी रकम देनी पड़ी होगी उसके बाद जो रकम ठेकेदारो के पास शेष बची होगी उसमे से भी अपना मोटा- मोटा हिस्सा लगाया होगा तो जाहिर सी बात है कि जो रकम आखरी मे सबका कोटा पुरा पड़ने के बाद शैष बची होगी उसमे ज्यादा ओर अच्छा माल खरिदे जाने से तो रहा। तो कम ओर घटिया से घटिया माल लगना तो था ही…।
अब जब सवाल उठ रहा हे कि इतना पैसा खर्च होने के बाद भी राष्ट्र-मण्डल खेलो कि तैयारी मे इतनी देर क्यो लगी?… तो ये हमारे आला अधिकारी लोग एक दुसरे के पर गलती थोपने से भी नहि चूक रहे है।
दिल्लि वित्त मन्त्रि “ए० क० वालिया जी ने तो अभी पिछ्ले दिनो आई. एन.७ चेनल पर आशुतोष जी के कर्यक्रम “एजेण्डा” मे तो पूरे भारतवर्ष की जनता के सामने राष्ट्र-मण्डल खेलो की तैयारीयों की देरी के चलते “एन.डी.एम.सी” ओर “एम.सी.डी” को ही दोषी ठहराह दिया…..।
ऐसे मे कई बड़े-बड़े नैता और विदेशी अधिकारी लोग राष्ट्र-मण्डल खेलो की तैयारी को निहारने के लिये भारत का दोरा कर रहे है। और अगर इन विदेशी अधिकारीयो के सामने कुछ ऐसी बात प्रकट हो जाये जो भारत की के नाक काटने के बराबर हो…. जैसा कि एक उदाहरण हे- अभी दो दिन ही पहले बिर्टेन के प्राधानमन्त्रि “डेविड केमरान” जैसे अधिकारी लोग… खेलो की ओपनिन्ग के लिये चुने गये “जे.एल. नेहरू स्टेडीयम” पहुचे और पहुचने के बाद हमारे अधिकारीयों के सामने बड़ी तरिफ़े भी की…. लेकिन उनके जाने के कुछ हि देर बाद झिलमिल बारिस होने से स्टेडीयम की छ्त टपक आयी वो भी उस तरफ़ से जहां आला विदेशी अधिकारी और खेल मन्त्रि एम. एस. गिल.. बेठे थे…और बारिस बुन्दे भी सीधे वहा गिरने लगी जहां उनके बेठने का इन्ताज़ाम किया गया था…। ये तो अच्छा हुआ कि ये आला अधिकारी लोग स्टेडीयम को निहारने और तरिफ़ करने के बाद.. स्टेडीयम से जैसे हि जाने के लिये बाहर हि निकले थे कि छ्त का टपकना शुरू हो गया.. अगर छ्त थोड़ी सी भी जल्दि टपक जाती तो हमारे भारत के राजनैताओ की लापरवाही और नीजि स्वार्थ की वजह से हमारे भारत की शर्म से नाक कटने मे जरा भी देर नही लगती।
खैर जो भी हो “सुना हे दिवारो के भी कान होते है” राष्ट्र-मण्डल खेलो की तैयारीयों से जुड़े करोड़ो-अरबो के घोटाले की बात कहीं ना कहीं से विदेशो तक तो पहुच ही जायेगी।
अब “सी.वी.सी. ने इस घोटाले के मामले पर तैयार रिपोर्ट शिला जी के सामने पैश कर दी है। और ये कहा जा रहा है कि अब आगे इस घोटाले की जांच “सी.बी.आई. करेगी। अब देखना ये होगा कि ये जांच कहा तक आगे बढती है……….।
ये तो हम लोग भी जानते हें कि इस करोड़ो- अरबो के घोटाले मे छोटे से लेकर बड़े अधिकारीयों की कोइ छोटी-मोटी चैन तो होगी नही क्योन्कि ये करोड़ो-अरबो का घोटाला अकेले चार-पांच अधिकारी या नैता तो कर नही सकते…। इससे इसमे पूरी अधिकारीयों की लड़ी होने की पूरी-पूरी सम्भावना है…। जिससे जाहिर होता है कि इतने लम्बे-चोडे घोटाले वाली जांच को अन्तिम चरण मे पहुचाने के लिये जांच अधिकारीयों को काफ़ी मसक्कत करनी पड़ सकती है…। और अगर कड़ी मसक्कत के बाद सही निष्कर्ष पर पहुच भी गये तो… ये लम्बे-चोड़ा केस यू हीं दो- तीन दिन या सप्ताहो मे या महिनो मे सुलझने वाला नही वो भी हमारे भारत जैसी अदालतो मे..जहां एक केस की सुनवाई होते- होते एक घर की चार पीढी निकल जाती हैं जब भी फ़ैसला नही हो पाता और थक हारकर केस को ठण्डे बस्ते में डाल दिया जाता हे या फ़िर जल्दबाजी मे बिना सोचे समझे उल्टा- सीधा फ़ैसला कर दिया जाता है। तो इससे साफ़-सीधा पता चलता है कि ये केस दो या तीन साल से कम वक्त मे तो सुलझने वाला नही…….।
अब इससे ये तो साफ़ हो गया होगा कि ये राजनैतिक लोग काम देरी से होने क आरोप एक-दूसरे पर क्यों लगा रहे थे……..”अरे भाई लोगो जिससे इनकी पोल ना खुल जाऐ”… .
लगातार ये राजनैतिक लोग यह कह कर भोली- भाली आम जन का ध्यान इस तरफ़ से हटाने की कोशिश कर रहे है कि अब दिल्लि वल्ड क्लास शहर बनने जा रही है। यहां अगर राजनैतिक रूप से एक दूसरे पर दर पे दर आरोपो और झगड़ो के हलात समहाले नही गये तो फ़िर वो दिन दूर नही जिस दिन राजधानी दिल्लि “POLITICAL QUARREL CITY” के नाम से जानी जायेगी। आखरी मैं यही कहुंगा कि देखते है राष्ट्र-मण्डल खेलो के बाद “सी.बी.आई” कि जांच मे इतने भारी-भरकम इस घोटाले मे किस-किस का हाथ निकलता है।……

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